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आखिर क्या वजह है कि म्यांमार के रखाइन प्रांत में सेना का कहर थम नहीं रहा है। रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन के बावजूद वहां जो बची हुई रोहिंग्या आबादी है, वह लगातार सैन्य हमले झेल रही है। 13 फरवरी को रखाइन के बुथिडोंग शहर में एक स्कूल में बम से हुए धमाके में 21 बच्चे जख्मी हो गए। पिछले एक महीने के दौरान रखाइन में 11 लोग मारे गए हैं जबकि 51 जख्मी हो चुके हैं।
ताजा घटना में आर्टिलरी शेल से हुए हमले के दौरान क्लास के भीतर मौजूद छात्रों में दहशत और भगदड़ मच गई। 21 घायल छात्रों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। स्थानीय लोगों के मुताबिक म्यांमार सेना और अराकान सेना के बीच सुबह करीब 9 बजे हिंसक झड़पें हुई थीं, उसके एक घंटे बाद स्कूल में यह हमला किया गया।
दरअसल रखाइन प्रांत में पिछले कई सालों से विद्रोही ताकतें और हमलावर गुट सक्रिय हैं और आरकन आर्मी के नाम से इन्होंने खुद को बेहद मजबूत कर रखा है। म्यांमार सेना के साथ इसका टकराव लगातार जारी है, जिसका खामियाजा वहां के स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ता है।
म्यांमार सेना पर यह आरोप लगते रहे हैं कि उसने रखाइन प्रांत में रह रहे लोगों और खासकर उन रोहिंग्या मुसलमानों पर जुल्म ढाए हैं और उन्हें पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। हाल ही में अंतराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) ने म्यांमार को आदेश दिए थे कि वह रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उनका नरसंहार तत्काल रोके और उन्हें वापस सुरक्षित तरीके से अपने घर बुलाए। म्यांमार की नेता आंग सान सू ची ने अपनी सेना का बचाव करते हुए कहा था कि वहां जो सैन्य कार्रवाइयां होती रही हैं, वह चरमपंथी ताकतों के खिलाफ होती हैं, न कि सामान्य रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ।
दरअसल म्यांमार के रखाइन में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। बांग्लादेश की सीमा से लगा रखाइन प्रांत म्यांमार के उत्तर पश्चिमी छोर पर है और 2014 की जनगणना के मुताबिक रखाइन की आबादी करीब 21 लाख है। इनमें से 20 लाख बौद्ध हैं और 29 हजार मुसलमान। इस जनगणना में 10 लाख लोगों को मुख्य तौर पर इस्लाम मानने वाले और मूल रूप से बांग्लादेशी मानकर शामिल ही नहीं किया गया जबकि ये लोग पिछली कई पीढ़ियों से वहां रहते आ रहे हैं। इन्हें ही रोहिंग्या कहा जाता रहा है। जाहिर है जब अपने ही देश में अजनबी होने का एहसास हुआ तो इनमें से कुछ विद्रोही गुट भी पैदा हो गए। यहीं से रोहिंग्या की समस्या दिनोंदिन जटिल होती गई।
खुद को जनगणना में शामिल न किए जाने और वहां की नागरिकता न मिलने से परेशान विद्रोही गुटों ने सबसे पहले 2017 के अगस्त में म्यांमार सेना के एक कैंप पर हमला किया और 12 सुरक्षाकर्मियों को मार डाला। इस हमले से बौखलाए म्यांमार सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। लगातार हमले किए, सैकड़ों रोहिंग्या मारे गए और फिर रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन शुरू हो गया। धीरे-धीरे यह 10 लाख की आबादी बांग्लादेश में आ गई और इनमें से कुछ ने भारत में भी शरण ली।
तब से यह जंग लगातार जारी है और म्यांमार बार-बार ये सफाई दे रहा है कि वह महज चरमपंथी ताकतों के खिलाफ अभियान चला रहा है, सामान्य नागरिकों या रोहिंग्या लोगों पर कोई जुल्म नहीं हो रहा। आईसीजे में भी म्यांमार ने यही तर्क रखा है।
लेकिन जिस तरह दो दिन पहले स्कूल पर हमला हुआ और बच्चों को जख्मी कर दिया गया। उससे साफ है कि उस इलाके में अब भी दहशत का माहौल बरकरार है और सेना का क्रूर चेहरा बीच बीच में सामने आ ही जाता है।