
जलवायु परिवर्तन के कारण 2070 तक दुनियाभर में पौधों व पशुओं की एक तिहाई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में हुए एक शोध में यह अनुमान लगाया गया है।
शोधार्थियों ने जलवायु परिवर्तन के कारण हाल में विलुप्त हुई प्रजातियों की जानकारी के अध्ययन के बाद यह अनुमान लगाया है। इसमें दुनियाभर की 581 जगहों से पौधों और जानवरों की 538 प्रजातियों का सर्वे किया गया।
शोधकर्ताओं ने इस दौरान उन जगहों की प्रजातियों पर विशेष गौर किया जहां बीते 10 वर्षों में कई बार सर्वे कराये जा चुके हैं। उन्होंने इन जगहों पर जलवायु परिवर्तन के समय-समय पर लिए गए आंकड़ों को शामिल किया। उन्हाेंने पाया कि एक से अधिक जगहों पर 538 प्रजातियों में से 44 फीसदी पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के क्रिश्चियन रोमन ने कहा, एक ही जगह पर 19 अलग अलग जलवायु कारकों में परिवर्तन का विश्लेषण करने के बाद प्रजातियों के विलुप्त होने का कारण पता लगाया जाएगा। साथ ही यह भी पता लगाया जाएगा कि वहां की आबादी कितना जलवायु परिवर्तन बर्दाश्त कर सकती है।
शोध के दौरान यह अनुमान भी लगाया गया कि तापमान से बचने के लिए आबादी कितनी जल्द एक जगह से दूसरी जगह जा सकती है। आबादी कितने समय में विलुप्त होगी यह समझने के लिए किसी स्थान का वार्षिक अधिकतम तापमान यानी गर्मियों के मौसम में बढ़ता पारा मुख्य कारक है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जहां स्थानीय प्रजातियां विलुप्त हुईं वहां औसत वार्षिक तापमान में कम बदलाव देखा गया। शोध में पाया गया कि अधिकतर प्रजातियां अधिकतम तापमान में वृद्धि को बर्दाश्त करने में सक्षम थीं लेकिन एक स्तर तक।
अधिकतम तापमान में वृद्धि 0.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि पर 50 फीसदी प्रजातियां स्थानीय स्तर पर विलुप्त हुईं। वहीं अगर तापमान वृद्धि 2.9 डिग्री से अधिक हुई तो 95 फीसदी प्रजातियां विलुप्त हुईं। शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रजातियों के नुकसान के अनुमान इस बात पर निर्भर करते हैं कि भविष्य में जलवायु कितनी गर्म होगी।
शोध में दावा किया गया कि अगर पेरिस समझौते पर कायम रहा गया तो 2070 तक पौधों व पशुओं की हर 10 में दो से कम प्रजातियों को हम खो सकते हैं। पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य रखा गया है।
जलवायु परिवर्तन के कारण 2070 तक दुनियाभर में पौधों व पशुओं की एक तिहाई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में हुए एक शोध में यह अनुमान लगाया गया है।
शोधार्थियों ने जलवायु परिवर्तन के कारण हाल में विलुप्त हुई प्रजातियों की जानकारी के अध्ययन के बाद यह अनुमान लगाया है। इसमें दुनियाभर की 581 जगहों से पौधों और जानवरों की 538 प्रजातियों का सर्वे किया गया।
शोधकर्ताओं ने इस दौरान उन जगहों की प्रजातियों पर विशेष गौर किया जहां बीते 10 वर्षों में कई बार सर्वे कराये जा चुके हैं। उन्होंने इन जगहों पर जलवायु परिवर्तन के समय-समय पर लिए गए आंकड़ों को शामिल किया। उन्हाेंने पाया कि एक से अधिक जगहों पर 538 प्रजातियों में से 44 फीसदी पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं।
19 जलवायु कारकों में परिवर्तन का विश्लेषण होगा
यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के क्रिश्चियन रोमन ने कहा, एक ही जगह पर 19 अलग अलग जलवायु कारकों में परिवर्तन का विश्लेषण करने के बाद प्रजातियों के विलुप्त होने का कारण पता लगाया जाएगा। साथ ही यह भी पता लगाया जाएगा कि वहां की आबादी कितना जलवायु परिवर्तन बर्दाश्त कर सकती है।
शोध के दौरान यह अनुमान भी लगाया गया कि तापमान से बचने के लिए आबादी कितनी जल्द एक जगह से दूसरी जगह जा सकती है। आबादी कितने समय में विलुप्त होगी यह समझने के लिए किसी स्थान का वार्षिक अधिकतम तापमान यानी गर्मियों के मौसम में बढ़ता पारा मुख्य कारक है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जहां स्थानीय प्रजातियां विलुप्त हुईं वहां औसत वार्षिक तापमान में कम बदलाव देखा गया। शोध में पाया गया कि अधिकतर प्रजातियां अधिकतम तापमान में वृद्धि को बर्दाश्त करने में सक्षम थीं लेकिन एक स्तर तक।
अधिकतम तापमान में 0.5 डिर्गी की वृद्धि से 50 फीसदी प्रजातियां विलुप्त हुईं
अधिकतम तापमान में वृद्धि 0.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि पर 50 फीसदी प्रजातियां स्थानीय स्तर पर विलुप्त हुईं। वहीं अगर तापमान वृद्धि 2.9 डिग्री से अधिक हुई तो 95 फीसदी प्रजातियां विलुप्त हुईं। शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रजातियों के नुकसान के अनुमान इस बात पर निर्भर करते हैं कि भविष्य में जलवायु कितनी गर्म होगी।
पेरिस समझौता माना तो 10 में से दो प्रजाति विलुप्त होंगी
शोध में दावा किया गया कि अगर पेरिस समझौते पर कायम रहा गया तो 2070 तक पौधों व पशुओं की हर 10 में दो से कम प्रजातियों को हम खो सकते हैं। पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य रखा गया है।
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