-दिनेश ठाकुर
नदियों, परिंदों और पवन के झोकों की तरह सुरों पर भी सरहदों के कायदे लागू नहीं होते। इब्ने इंशा ने कहा था- ‘इस दुनिया में सब रब का है/ जो रब का है, वो सब का है।’ सुर इसी भावना से सरहदें पार करते हैं और रब के प्रसाद की तरह ग्रहण किए जाते हैं। पाकिस्तान की बड़ी आबादी लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार और जगजीत सिंह की आवाज की दीवानी है तो भारत में भी मेहदी हसन, गुलाम अली, नूरजहां, नुसरत फतेह अली खान, आबिदा परवीन वगैरह की गायकी के कद्रदान कम नहीं हैं।
सियासत ने पिछले कुछ साल से इस सुरीले माहौल में तल्खियां घोल रखी हैं। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के तार कोरोना काल में भी ढीले नहीं हुए हैं। एक ऑनलाइन कंसर्ट में पाकिस्तानी गायक राहत फतेह अली खान के साथ शिरकत करने को लेकर कुछ भारतीय कलाकारों को फैडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज एसोसिएशन ने नोटिस जारी किया है। इसमें पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम करने पर प्रतिबंध के बावजूद भारतीय कलाकारों को कंसर्ट में हिस्सा लेने के लिए लताड़ा गया है और चेतावनी दी गई है कि आइंदा ऐसा किया गया तो ‘सख्त एक्शन’ लिया जाएगा। नोटिस कहता है- ‘हमें एहसास होना चाहिए कि जब पूरी दुनिया कोरोना से लड़ रही है, सरहद पर पाकिस्तान हमारे जवानों को मार रहा है।’ नोटिस में तो कंसर्ट में शामिल भारतीय कलाकारों के नामों का जिक्र नहीं है, लेकिन एसोसिएशन के महासचिव अशोक दूबे ने एक वेबसाइट को बताया कि हर्षदीप कौर और विजय अरोड़ा ने कंसर्ट में शिरकत की।
चार साल पहले उरी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा था। पिछले साल जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद पाकिस्तान ने बौखला कर भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगाई तो आग में और घी पड़ गया। इस आग में दोनों देशों के कलाकारों के हित झुलस रहे हैं। पाकिस्तान हुक्मरानों का यह पुराना मर्ज है कि जब भी भारत के साथ रिश्तों में खटास बढ़ती है, सबसे पहले उनका नजला भारतीय फिल्मों पर गिरता है। वे इस हकीकत को भी नजरअंदाज कर देते हैं कि उनकी लस्त-पस्त अर्थव्यवस्था को थोड़ी-बहुत ऑक्सीजन भारतीय फिल्मों से भी मिलती है।
पाकिस्तान में सालाना औसतन दो दर्जन फिल्में बनती हैं, जबकि भारत हर साल एक हजार से ज्यादा (सभी भाषाओं की) फिल्में बनाता है। जाहिर है, भारतीय फिल्मों के बगैर पाकिस्तान के सिनेमाघरों का काम नहीं चल सकता। इन सिनेमाघरों के मालिक भी मानते हैं कि भारतीय फिल्मों पर रोक से उन्हें भारी घाटा झेलना पड़ता है। अगर भारतीय फिल्मों से रोक नहीं हटती है तो कई सिनेमाघर शॉपिंग मॉल और अपार्टमेंट में तब्दील हो जाएंगे। करीब 13 साल पहले जब पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों से रोक हटाई गई थी तो वहां के सिनेमाघर गुलजार हो गए थे। सलमान खान की ‘सुलतान’ ने 2016 में वहां 37 करोड़ रुपए का कारोबार किया था। उसी साल पाकिस्तान के प्रमुख अखबार ‘डॉन’ ने अपने सम्पादकीय में लिखा था- ‘भारतीय फिल्मों पर रोक से पाकिस्तान का सिनेमा उद्योग बुरी तरह प्रभावित होता है। सियासी चिंताएं बेशक वाजिब हैं, लेकिन दोनों तरफ फायदा पहुंचाने वाले सांस्कृतिक आदान-प्रदान की कीमत पर यह सब नहीं होना चाहिए।’