World Cancer Day 2020: कैंसर को मात देकर खुशहाल जिंदगी को जिया जा सकता है। कई लोगों ने इसे साबित करके दिखाया है। कैंसर को हराने वाले इन लोगों में जिंदगी को जीने का जोश, उत्साह और जुनून पहले की तरह बरकरार है। कुछ ऐसे ही लोगों ने हिन्दुस्तान से अपने अनुभव साझा किए, पेश है रिपोर्ट :-
रेणुका ने 23 साल पहले कैंसर को दी थी मात:
दिल्ली में वसंत विहार इलाके की रहने वालीं रेणुका प्रसाद को वर्ष 1997 में ब्रेस्ट कैंसर हुआ था। तब उनकी उम्र 48 वर्ष थी। रेणुका ने बताया कि चिकित्सीय जांच में बायीं ब्रेस्ट में कैंसर होने के बारे में जानकारी मिली थी। पति आर्मी में नौकरी करते थे तो इलाज का लाभ मिल गया।
आर्मी के अस्पताल में इस बीमारी का इलाज कराया। इलाज के दौरान बायीं ब्रेस्ट को निकाला गया। कैंसर में ऑपरेशन से ज्यादा कीमोथेरेपी के दौरान तकलीफ महसूस होती है।
तकलीफों का मात देकर मैंने जिंदगी की जग लड़ी और आज 23 साल बाद पूरी तरह से स्वस्थ हूं। इंडियन कैंसर सोसाइटी की मदद से लोगों को कैंसर के बारे में जागरूक कर रही हूं।
चंद्र मोहन को था ब्रेस्ट कैंसर:
53 वर्षीय चंद्र मोहन गोयल के लिए ब्रेस्ट कैंसर का होना पूरी तरह से आश्चर्यजनक था। उन्हें पहली बार पता चला कि यह बीमारी पुरुषों को भी हो सकती है जिसका इलाज उन्होंने दिल्ली के एक कैंसर अस्पताल में कराया। चंद्र मोहन बताते हैं कि उनके दायीं ओर गांठ बन गई थी।
स्थानीय चिकित्सक द्वारा दवाई देने से गांठ खत्म हो जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे गांठ में दर्द होने की परेशानी बढ़ती गई। जांच कराने पर कैंसर होने के बारे में पता चल गया, जिसके इलाज के लिए वर्ष 2019 में दिल्ली आना पड़ा। उन्होंने बताया कि दिल्ली के मैक्स अस्पताल की डॉ. मीनू वालिया की मदद से उनका इलाज संभव हो सका। कैंसर की बीमारी से लड़ने के लिए किसी भी व्यक्ति का मानसिक तौर पर मजबूत और परिवार के लोगों का साथ होना जरूरी है।
गीता को मिली नई जिंदगी:
छाती में दर्द और सांस लेने में 50 वर्षीय गीता अग्रवाल को तकलीफ की शिकायत थी। जांच के बाद उन्हें फेफड़े के कैंसर से ग्रस्त होने का पता चला। लेकिन उन्होंने जिंदगी की जंग नहीं हारी। गीता बताती है कि जब चिकित्सकों ने बताया कि फेफड़े का कैंसर ज्यादातर सिगरेट पीने वाले लोगों को होता है, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई। फिर आगरा से आकर दिल्ली के मैक्स अस्पताल में वर्ष 2019 के जुलाई महीने में कैंसर का इलाज कराया। बच्चों और परिवार वालों के सहयोग से मेरा इलाज हो पाया।